Friday, 13 July 2012

samajik vidmabna


हमारा समाज बहुत विंडबना से भरा हुआ है ये चाहत तो करता है सभ्यता की शांति की सत्यता की इमानदारी की पर वास्तविकता मैं बहुबल धनबल दिखावे को ही सही मानता है या यु कहे उसी को मान्यता देता है ............इसी संधर्भ मैं मेरी कविता की कुछ पंक्तिया .....................................
जब तलक सच्चाई का दामन पकड़े रखा , ज़माने ने मेरी क़द्र न की .........
जबसे झूठों का सिरमौर बना हूँ ,लोग मुझे नेकी का फरिश्ता कहने लगे है ........
जब तलक मजलूमों का साथ देता रहा , जमाना भर मुझको ठुकराता रहा
जबसे गरीबो का खून चूसने लगा हूँ , लोग मुझे रहनुमा कहने लगे है ..............
जब तलक इमानदारी से अपना गुजारा किया , जमाना भर मेरा बैरी हुआ
जबसे बेईमानों का राजा बना हूँ , लोग मुजको खेरख्व्हा कहने लगे है ..............
जमाना कहता है की सच्चाई पनपती नहीं
मैं कहता हुईं की ये जालिम जमाना पनपने नहीं देता ..............
जय महाकाल
 

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