Sunday, 22 July 2012

जिन्दा है स्कोर्ट और सांडर्स


भारतीय संविधान मैं जो सबसे अहम वस्तु है वो है विधि के द्वारा स्थापित शासन की सथापना का
लक्ष्य और इसी के अन्तरगत और इसी स्वपन को पूरा करने के लिए स्थापना हुई पुलिस बल की
ये पुलिस बल का स्वरुप परन्तु वही रखा गया जो अंग्रेजो के समय था अब जब पूरा संविधान ही
अंग्रजो वाला हो तो कल्पना की जा सकती है की पुलिस व्यवस्था मैं परिवर्तन करके अपने ऐशो आराम मैं कोन खलल डालता जो जैसा है उससे वैसे ही चलने दिया जाये
ऐसी ही किसी सोच या पूर्वाग्रहों से पीड़ित दिख पड़ते है वो लोग
अब नेहरू और गाँधी जैसो को गिफ्ट मैं दी गयी आजादी या यु कहे की राजवंश को किया गया
सत्ता परिवर्तन वो भी इस विश्वास के साथ की वो पूरी निष्टा से उन्ही के शासन को आगे बढायेंगे
कल्पना की जा सकती है की नवीनता का नितांत आभाव रहेगा
भारतीय पुलिस बल की सथापना अंग्रेजो के समय मैं भारतीय लोगो क्रान्तिकारी लोगो और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सर उठाने वाले लोगो के सरो को कुचलने के तात्कालिक शक्ति के फलस्वरूप हुई
और इसी पुलिस बल की शक्ति के कारन अंग्रेजो ने हम भारतीयों पर न जाने कितने जुलम किये न जाने कितनी यातनाये दी
परन्तु १९४७ की ताताकथित आजादी के बाद भी इसके स्वरुप मैं कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया गया और खेत को सँभालने और उसकी रक्षा का भार सबसे बड़े चोर को दे दिया
पुलिस बल का उपयोग हमेसा से ही सत्ता प्रितष्ठानो ने अपनी अहम और स्वार्थ पूर्ति के लिए ही सदैव किया है
पुलिस बल आजकल लोकल विधायको दलालो का पैसे बनाने का अड्डा बन चुके है
और खुद पुलिस वाले किसी शैतान से कम नहीं है आलम ये है किसी पुलिस स्टेशनों मैं
अगर हमें कोई FIR करवानी है तो हमारी जेब भरी होनी चाहिए या फिर कोई बड़ी पहुँच
अगर दोनों मैं से कुछ भी नहीं है तो न्याय पाना तो बहुत दूर की बात है आपकी रिपोर्ट
भी दर्ज नहीं होती है
थानाधिकारी ही नहीं बल्कि एक अदना सा कांस्टेबल भी एक आम आदमी को कुत्ते की तरह
समझते है बेवजह लोगो को तंग करना उनको कुछ जयादा ही पसंद है
इनके खिलाफ आवाज उठाने वालो को अक्सर नारकीय जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है
आज पुलिस स्टेशनों मैं रंडी के कोठे से भी ज्यादा गिरे हुए काम होते है
एक वेश्या तो अपनी इज्जत अपनी मज़बूरी मैं बेचती है पर यहाँ तो जमीरो की बोली लगती है
वो भी ऐशो आराम के लिए ऐसी गिरी हुई संस्थयाए देश मैं न्याय की स्थापना करेगी मानना मुश्किल है
आज एक स्वाभिमानी व्यक्ति अगर न्याय पाने के लिए किसी पुलिस अधिकारी के खिलाफ आवाज उठा ले तो उसकी पिटाई अपमान और न जाने क्या क्या झेलना पड़ता है ऐसे मैं एक आम आदमी
क्या करे ?
एक बार लाला लाजपतराय जी को लाठियों से पीट पीट कर मार डाला गया था और वो भी इसलिए क्योकि वो न्याय के लिए लड़ रहे थे , ये आजादी के पहले की बात थी परन्तु क्या आज हालातों मैं कोई तबदीली आई है, नहीं ,आज भी पुलिस का वही बर्व=बरता वाला बर्ताव न्याय को कुचलने का पर्यास वो सब आज भी वैसे ही जैसे १९४७ से पहले थे
परन्तु तब युवा मैं जोश था उनका जमीर जिन्दा था तभी भगत सिंह राजगुरु आजाद जी ने सांडर्स
को मार कर बदला लिया युग बदला हम आजाद हुए परन्तु कुछ नहीं बदला तो स्कोर्ट और सांडर्स जैसे अफसर नहीं बदले तो देश के हालात कुछ नहीं बदला तो न्याय पाने के लिए फिर अन्याय को
सहने का रिवाज
हां कुछ बदला है तो आज के युवा का स्वाभिमान उनका जमीर जो मर चूका है आज भी न जाने कितने लाला लाजपतराय जी के राह पर चलने वाले की हत्या आजादी के बाद इन्ही पुलिस वालो ने कर दी परन्तु न कोई भगत सिंह पैदा हुआ न कोई आजाद ...................
आखिर मैं एक प्रश्न की आखिर क्या हो गया हमरी युवा पीढ़ी को और आखिर क्या जरुरत है हमें ऐसे पुलिस वालो की .............?
क्यों न ऐसे स्कोर्ट और सांडर्स को गोली मार दी जाये ?
सोचिये जरा ...........................
By:Er. Ankit mimani
 

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