Sunday, 29 July 2012

मैंने खुद को कैद कर रखा है तेरे साये मैं अब तक 
और तुम पूछती हो की मैं अब तक जिंदगी मैं आगे क्यों नहीं बढा................


Sunday, 22 July 2012

जब से मैं प्रेम में हूं, मैं अकेलापन और जरूरतमंद महसूस नहीं करता।

"जब से मैं प्रेम में हूं, मैं अकेलापन और जरूरतमंद महसूस नहीं करता। इसी समय में एक नये तरह का एकांत महसूस करता हूं। यह ऐसे लगता है जैसे कि पोषित कर रहा है। क्या हो रहा है?'

प्रेम हमेशा एकांत लाता है। अकेलापन हमेशा प्रेम लाता है। जब तुम प्रेम में हो, तुम अकेले नहीं हो सकते। लेकिन जब तुम प्रेम में होते हो, तुम्हें अकेला होना पड़ेगा। अकेलापन नकारात्मक दशा है। अकेलेपन का मतलब होता है कि तुम किसी दूसरे की लालसा रखते हो। अकेलेपन का मतलब होता है कि तुम अंधेरे में, उदासी में, विषाद में हो। अकेलेपन का मतलब होता है कि तुम भयभीत हो। अकेलेपन का मतलब होता है कि तुम अकेले छूट गए ऐसा महसूस करते हो। अकेलेपन का मतलब होता है कि किसी को तुम्हारी जरूरत नहीं है। यह पीड़ा देता है। एकांत फूल की तरह होता है। ये अलग ही बात है।

अकेलापन घाव है जो कैंसर हो सकता है। किसी दूसरी बीमारी की तुलना में बहुत अधिक लोग अकेलेपन के कारण मरते है। दुनिया अकेले लोगों से भरी है, और उनके अकेलेपन के कारण वे सब तरह की मूर्खताएं किए चले जाते हैं ताकि किसी तरह से वह घाव, वह खालीपन, वह निर्जनता, वह नकारात्मकता भर जाए।

लोग दूसरों से संबंधित हुए चले जाते हैं, लेकिन वे दोनों अकेले हैं इसलिए रिश्ता संभव नहीं होता। रिश्ता सिर्फ ऊर्जा की प्रचुरता से संभव होता है, न कि जरूरत से। यदि एक व्यक्ति जरूरतमंद है और दूसरा व्यक्ति भी जरूरतमंद है, तब दोनों एक-दूसरे का शोषण करने की कोशिश करेंगे। शोषण का रिश्ता होगा, न कि प्रेम का, न कि करुणा का। यह मित्रता नहीं होगी। यह एक तरह की शत्रुता होगी-बहुत कड़वी, लेकिन शक्कर चढ़ी हुई। और देर-सबेर शक्कर उतर जाती है। हनीमून के पूरा होते-होते शक्कर जा चुकी और सब कड़वा बचता है। अब वे फंस गए।

पहले वे अकेले अकेलापन महसूस करते थे, अब वे साथ-साथ अकेले हैं-जो और भी अधिक कष्ट देता है। जरा देखो पति और पत्नी कमरे में बैठे हुए, दोनों अकेले। सतह पर साथ, गहरे में अकेले। पति अपने स्वयं के अकेलपन में खोया हुआ, पत्नी अपने स्वयं के अकेलेपन में खोई हुई। दुनिया की सबसे अधिक दुखदायी चीज देखनी हो तो वह है दो प्रेमी, एक जोड़ा, और दोनों अकेले-दुनिया की सबसे दुखदायी चीज!

एकांत पूरी अलग ही बात है। एकांत तुम्हारे हृदय में कमल का खिलना है। एकांत विधायक है, एकांत स्वास्थ्य है। यह तो स्वयं के होने का आनंद है। यह तो स्वयं के अपने अवकाश में होने का आनंद है। जब तुम प्रेम में होते हो, तुम एकांत महसूस करते हो। एकांत सुंदर है, एकांत आनंद है। लेकिन सिर्फ प्रेमी इसे महसूस कर सकते हैं, क्योंकि सिर्फ प्रेम तुम्हें अकेले होने का साहस देता है, सिर्फ प्रेम अकेले होने का संदर्भ पैदा करता है। सिर्फ प्रेम तुम्हें इतना गहनता से तृप्त करता है कि तुम्हें किसी दूसरे की जरूरत नहीं होती-तुम अकेले हो सकते हो। प्रेम तुम्हें इतना केंद्रित कर देता है कि तुम अकेले हो आनंदित हो सकते हो।

अच्छा है कि इसे समझो, क्योंकि यदि प्रेमी एक-दूसरे की स्पेस को, अकेला होने की जरूरत को नही स्वीकारेंगे तो प्रेम नष्ट हो जाएगा। एकांत के द्वारा प्रेम ताजी ऊर्जा पाता है, ताजा रस। जब तुम अकेले हो, तुम उस बिंदु तक ऊर्जा इकट्ठी करते हो जहां से यह प्रवाहित हो जाए। अकेले में तुम ऊर्जा इकट्ठी करते हो। ऊर्जा जीवन है और ऊर्जा आनंद है, और ऊर्जा प्रेम है और ऊर्जा नृत्य है और ऊर्जा उत्सव है।

जब तुम प्रेम में होते हो, अकेले होने की बहुत बड़ी जरूरत महसूस होती है। जब अकेले होते हो, तब बांटने की इच्छा पैदा होती है। इस समस्वरता को देखो: जब प्रेम में हो, तुम अकेला होना चाहते हो; जब अकेले हो, शीघ" ही तुम प्रेम में होना चाहते हो। प्रेमी करीब आते हैं और दूर जाते हैं, करीब आते हैं और दूर जाते हैं-वहां एक समस्वरता है।

दूर जाना प्रेम के विपरीत नहीं है; दूर जाना बस तुम्हारा वापस एकांत पाना है-इसकी सुंदरता है, और इसका आनंद है। लेकिन जब तुम आनंद से भरे हो, बांटने की आत्यंतिक, आवश्यक जरूरत पैदा होती है। आनंद तुम से बड़ा है, यह तुम्हारे द्वारा समा नहीं सकता। यह बाढ़ है! तुम इसे समा नहीं सकते; तुम्हें लोगों को बांटने के लिए खोजना होगा।

प्रेम और अकेलेपन के बीच नाते को देखो। दोनों का आनंद लो। दोनों में से एक को कभी मत चुनो, क्योंकि यदि तुम एक को चुनते हो तो दोनों मर जाते हैं। दोनों को घटने दो। जब एकांत घटे, इसमें चले जाओ; जब प्रेम घटे, इसमें चले जाओ।

एकांत श्वास का भीतर जाना है, प्रेम श्वास का बाहर निकलना है। यदि तुम एक को रोकते हो, तुम मर जाओगे। श्वास समग्र प्रक्रिया है: भीतर आती श्वास आवश्यकता है ऐसे ही जैसे कि बाहर जाती श्वास। कभी मत चुनो! चुनावरहित इसे होने दो, और इसके साथ जाओ जहां कहीं श्वास जा रही है। एकांत महसूस करो और प्रेम महसूस करो, और कभी इन दो के बीच द्वंद्व मत पैदा करो। इन दोनों के द्वारा लयबद्धता पैदा करो, और तुम्हारे पास समृद्धता होगी जो कि बहुत दुर्लभ होती है।



ओशो: प्रेम और अकेलापन
जब से मैं प्रेम में हूं, मैं अकेलापन और जरूरतमंद महसूस नहीं करता।

"जब से मैं प्रेम में हूं, मैं अकेलापन और जरूरतमंद महसूस नहीं करता। इसी समय में एक नये तरह का एकांत महसूस करता हूं। यह ऐसे लगता है जैसे कि पोषित कर रहा है। क्या हो रहा है?'

प्रेम हमेशा एकांत लाता है। अकेलापन हमेशा प्रेम लाता है। जब तुम प्रेम में हो, तुम अकेले नहीं हो सकते। लेकिन जब तुम प्रेम में होते हो, तुम्हें अकेला होना पड़ेगा। अकेलापन नकारात्मक दशा है। अकेलेपन का मतलब होता है कि तुम किसी दूसरे की लालसा रखते हो। अकेलेपन का मतलब होता है कि तुम अंधेरे में, उदासी में, विषाद में हो। अकेलेपन का मतलब होता है कि तुम भयभीत हो। अकेलेपन का मतलब होता है कि तुम अकेले छूट गए ऐसा महसूस करते हो। अकेलेपन का मतलब होता है कि किसी को तुम्हारी जरूरत नहीं है। यह पीड़ा देता है। एकांत फूल की तरह होता है। ये अलग ही बात है।

अकेलापन घाव है जो कैंसर हो सकता है। किसी दूसरी बीमारी की तुलना में बहुत अधिक लोग अकेलेपन के कारण मरते है। दुनिया अकेले लोगों से भरी है, और उनके अकेलेपन के कारण वे सब तरह की मूर्खताएं किए चले जाते हैं ताकि किसी तरह से वह घाव, वह खालीपन, वह निर्जनता, वह नकारात्मकता भर जाए।

लोग दूसरों से संबंधित हुए चले जाते हैं, लेकिन वे दोनों अकेले हैं इसलिए रिश्ता संभव नहीं होता। रिश्ता सिर्फ ऊर्जा की प्रचुरता से संभव होता है, न कि जरूरत से। यदि एक व्यक्ति जरूरतमंद है और दूसरा व्यक्ति भी जरूरतमंद है, तब दोनों एक-दूसरे का शोषण करने की कोशिश करेंगे। शोषण का रिश्ता होगा, न कि प्रेम का, न कि करुणा का। यह मित्रता नहीं होगी। यह एक तरह की शत्रुता होगी-बहुत कड़वी, लेकिन शक्कर चढ़ी हुई। और देर-सबेर शक्कर उतर जाती है। हनीमून के पूरा होते-होते शक्कर जा चुकी और सब कड़वा बचता है। अब वे फंस गए।

पहले वे अकेले अकेलापन महसूस करते थे, अब वे साथ-साथ अकेले हैं-जो और भी अधिक कष्ट देता है। जरा देखो पति और पत्नी कमरे में बैठे हुए, दोनों अकेले। सतह पर साथ, गहरे में अकेले। पति अपने स्वयं के अकेलपन में खोया हुआ, पत्नी अपने स्वयं के अकेलेपन में खोई हुई। दुनिया की सबसे अधिक दुखदायी चीज देखनी हो तो वह है दो प्रेमी, एक जोड़ा, और दोनों अकेले-दुनिया की सबसे दुखदायी चीज!

एकांत पूरी अलग ही बात है। एकांत तुम्हारे हृदय में कमल का खिलना है। एकांत विधायक है, एकांत स्वास्थ्य है। यह तो स्वयं के होने का आनंद है। यह तो स्वयं के अपने अवकाश में होने का आनंद है। जब तुम प्रेम में होते हो, तुम एकांत महसूस करते हो। एकांत सुंदर है, एकांत आनंद है। लेकिन सिर्फ प्रेमी इसे महसूस कर सकते हैं, क्योंकि सिर्फ प्रेम तुम्हें अकेले होने का साहस देता है, सिर्फ प्रेम अकेले होने का संदर्भ पैदा करता है। सिर्फ प्रेम तुम्हें इतना गहनता से तृप्त करता है कि तुम्हें किसी दूसरे की जरूरत नहीं होती-तुम अकेले हो सकते हो। प्रेम तुम्हें इतना केंद्रित कर देता है कि तुम अकेले हो आनंदित हो सकते हो।

अच्छा है कि इसे समझो, क्योंकि यदि प्रेमी एक-दूसरे की स्पेस को, अकेला होने की जरूरत को नही स्वीकारेंगे तो प्रेम नष्ट हो जाएगा। एकांत के द्वारा प्रेम ताजी ऊर्जा पाता है, ताजा रस। जब तुम अकेले हो, तुम उस बिंदु तक ऊर्जा इकट्ठी करते हो जहां से यह प्रवाहित हो जाए। अकेले में तुम ऊर्जा इकट्ठी करते हो। ऊर्जा जीवन है और ऊर्जा आनंद है, और ऊर्जा प्रेम है और ऊर्जा नृत्य है और ऊर्जा उत्सव है।

जब तुम प्रेम में होते हो, अकेले होने की बहुत बड़ी जरूरत महसूस होती है। जब अकेले होते हो, तब बांटने की इच्छा पैदा होती है। इस समस्वरता को देखो: जब प्रेम में हो, तुम अकेला होना चाहते हो; जब अकेले हो, शीघ" ही तुम प्रेम में होना चाहते हो। प्रेमी करीब आते हैं और दूर जाते हैं, करीब आते हैं और दूर जाते हैं-वहां एक समस्वरता है।

दूर जाना प्रेम के विपरीत नहीं है; दूर जाना बस तुम्हारा वापस एकांत पाना है-इसकी सुंदरता है, और इसका आनंद है। लेकिन जब तुम आनंद से भरे हो, बांटने की आत्यंतिक, आवश्यक जरूरत पैदा होती है। आनंद तुम से बड़ा है, यह तुम्हारे द्वारा समा नहीं सकता। यह बाढ़ है! तुम इसे समा नहीं सकते; तुम्हें लोगों को बांटने के लिए खोजना होगा।

प्रेम और अकेलेपन के बीच नाते को देखो। दोनों का आनंद लो। दोनों में से एक को कभी मत चुनो, क्योंकि यदि तुम एक को चुनते हो तो दोनों मर जाते हैं। दोनों को घटने दो। जब एकांत घटे, इसमें चले जाओ; जब प्रेम घटे, इसमें चले जाओ।

एकांत श्वास का भीतर जाना है, प्रेम श्वास का बाहर निकलना है। यदि तुम एक को रोकते हो, तुम मर जाओगे। श्वास समग्र प्रक्रिया है: भीतर आती श्वास आवश्यकता है ऐसे ही जैसे कि बाहर जाती श्वास। कभी मत चुनो! चुनावरहित इसे होने दो, और इसके साथ जाओ जहां कहीं श्वास जा रही है। एकांत महसूस करो और प्रेम महसूस करो, और कभी इन दो के बीच द्वंद्व मत पैदा करो। इन दोनों के द्वारा लयबद्धता पैदा करो, और तुम्हारे पास समृद्धता होगी जो कि बहुत दुर्लभ होती है।



ओशो: प्रेम और अकेलापन
MAin thumare sath chalte huye rasta bhatak jana chahta huin.....

भारतीय संस्कृति का अपमान और पतन


नमस्कार मित्रों
मेरी आज की ये पोस्ट भारतीय संस्कृति को छोड़ कर पाश्चत्य संस्कृति का अनुसरण करने वाली युवा पीदी के लिए है
आज आधुनिकता के नाम पर भारतीय संस्क्रती सभ्यता को गाली देना २१ वी सदी या यु कहे मोर्डेन लोगो के लिए फैशन बन चूका है
आज हमारे समाज मैं भारतीय सभ्यता संसकारो के उल्टा आचरण करने को ही आधुनिकता कहा जाने लगा है परन्तु वास्तव मैं उन लोगो को इस छदम आधुनिकता के भयानक परिणामों की जानकारी नहीं है

और आज हालत ये है की खुलेपन के नाम पर आज समाज मैं इंतनी जयादा गंदगी भर चुकी है की अगर इस गट्टर के ढक्कन को खोला तो शायद तथाकथित सभ्य समाज इसकी बदबू से मर जाये परन्तु इस गट्टर मैं गंदगी भी तो इसी सभ्य समाज की ही है

भारत वर्ष मैं स्त्री को सैदव देवी के सामान ही पवित्र और महान मन गया है यहाँ हमेसा स्त्री को बराबर का अधिकार या यु कहे की पुरुष के व्यक्तित्व का निर्माण ही नारी के हाथो मैं सौंप दिया गया था नारी ही कभी माँ बनकर संस्कार कभी बहन बनकर सलाह और पत्नी बनकर साथ देती रही और हमारे हिंदू समाज को कभी भी स्त्री पुरुष समानता जैसी बातों का सामना ही नहीं करना पड़ा
परन्तु वर्तमान मैं आजकल देखने को आता है की स्त्री अपनी मर्यादा को छोड़ रही है पाश्चत्य का अनुकरण करने वाले लोगो ने स्त्री को सामान अधिकार जैसे बेफालतू के मुद्दे जिनका हमरे समाज मैं कोई मतलब नहीं था का उपयोग करके उनको बरगलाया गया उनकी आजादी के नाम पर उनको पथ भरष्ट किया गया



आजकल फैशन के नाम पर मोर्डेन दिखने के नाम पर भडकाऊ, कम कपडे पहने का रिवाज सा बन गया है परन्तु क्या कम कपडे पहन भर लेने मात्र से कोई मोर्डेन या सभ्य बन जाता है ..........
अगर ऐसा है तो फिर आदवासी तो सबसे जयादा मोर्डेन और सभ्य हुए ..............
बार शिकायत की जाती है की छेड़छाड़ बलात्कार के मामलों मैं तेजी आ रही है परन्तु इसमें इन मोर्देनिन्टी का कितना रोल है इसे भी समझना चाहिए
आज इसी खुलेपन और पाश्चात्यकरण के कारण जिस देश मैं स्त्री देवी थी वहाँ वह भोग्या बन गयी है आज स्त्री को मात्र एक ही नजर से देखा जाता है और वो है भोग की नजर .............
परन्तु इसका जिमेदार कोन है ............क्या यही मोर्डेन सोच जिम्मेदार नहीं है ......................
पहले जहा रिश्तों की अहमियत थी शादियों पूरी जिंदगी चलती थी वही आजकल रिश्ते किसी चिप्स के पैकेट जैसे हो गए है खा कर फेंक दो ये जो कारन आया है उसके जिमेदार भी तो यही खुली सोच ही तो है
लेट night ko घर से बाहर शराब पीकर नाचना और अपनी तमाम मर्यादायो को छोड़ कर नीचता का पर्दर्शन करना भी इसी मोर्देनितिटी का हिस्सा ही तो रहा है
आज अवैध संबंधो की जितनी बाढ़ आई है और उनके कारण होने वाले अपराधों मैं जिस प्रकार रोज बढ़ोतरी हो रही है उसके पीछे कोन है ...........................................
लिव इन रेल्तिओंशिप जैसे खुले विचारों या मोर्डेन लोगो की भाषा मैं कहू तो क्रांति
और आजाद विचारों ने लोगो की किता आजाद किया है ये वही जाने परन्तु अगर धयान से देखे और विचार करे तो ये बात साफ़ है की इस खुलेपन ने लोगो को आजाद किया है या नहीं पता नहीं परन्तु हां लोगो को कभी न खतम होने वाली न जाने कितनी व्याधियों से जरुर जोड़ दिया है
अवसाद आत्महत्या अकेलापन जितना इन खुले और मोर्डेन विचार वाले युवायो मैं बढ़ रहा है उतना पुरातन विचार वालो मैं नहीं क्योकि हिंदू तो सैदव आधुनिक रहा है परन्तु उसे आधुनिक दिखने के लिए इस प्रकार की मर्यादा विहीन कार्य करने की जरुरत नहीं रही
और भोगो को भोगने मैं अंधे हुए दिशा विहीन हुए युवा अंदर से खोखले हो चुके है वो देश समाज धरम के लिए कार्य करेंगे ये केवल कल्पना ही है क्योकि जो खुद को नहीं संभल सकता वो इतनी बड़ी जिमेदारी का निर्वाह कैसे कर सकता है
आज रिश्तों की मर्यादीत सीमा मैं जो अतिक्रमण हो रहा है वो तथाकथित इसी मोर्डेन सोच के कारण है
इस मोर्डेन सोच ने हमें कुछ दिया है दिखयी नहीं दे रहा पर हां हमरे धरम और देश को विध्वंस की और जरुर ले गए है
आज एक डिस्को मैं शराब पीकर नग्न नाच करने वाली लड़की आदर्श माँ साबित होगी इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है
शराब पीकर और केवल भोगो मैं आसक्त कोई लड़का आदर्श पिता साबित होगा कल्पना करना कठिन है
ऐसे मैं हमरी आने वाली संताने कैसी होगी इसकी कल्पना सहज है और डराने वाली भी है
जिस देश मैं खुद भगवान जनम लेते है उस देश मैं कैसे संस्कार हीन पीढ़ी का जनम होगा ये वास्तविकता भोत भयानक है
हिंदू समाज को अगर अपना अस्तित्व बनाये रखना है तो उसे इस छदम आधुनिकता और वास्तविक आधुनिकता के बीच का फरक समझना होगा और इसे अपने युवा तक पहुचना होगा
क्योकि पश्त्याकरण एक प्रकार से ईसाइयत की तरफ परथम कदम होता है और ऐसे व्यक्ति दिमागी और दिली तोर पर ईसाइयत मैं रम जाते है
छदम आधुनिकता के कारन ही भारत मैं स्कुलरिस्म का जनम हुआ है और ये स्कुलारिस्म हमरे हिंदू समाज को किस प्रकार से खोखला कर रहा है ये किसी से छुपा हुआ नहीं है


ऐसे मैं हिंदू धरम को रक्षा और सुरक्षा के लिए जिस युवा शक्ति की जरुरत है वो नहीं मिल पायेगी और फिर कभी हिंदू राष्ट्र का स्वपन नहीं देखा जायेगा

इसलिए जागो हिंदू जागो और इसके साथ ही सर्व हिंदू समाज को इस छदम आधुन्किता से मुक्त करवायें
मेरी ये पोस्ट महिलायों के कपड़ो को निशाना बनाने के लिए या पछमी सभ्यता को गलिया निकलने के लिए नहीं लिखी गयी है अपितु छदम आधुनिकता के नाम पर जिस प्रकार से हिंदू समाज को बरगलाया गया है और हमरी संस्क्रति को नष्ट करने और पश्चिमी सभ्यता की गंदगी और जूठन को समाज को परोसने का जो गन्दा खेल खेला जा रहा है उसके खिलाफ है

जय माँ भारती
 

kaali nagni

Oh vadiya glla kar k ankit nu good by ta keh gyi
Kambda sarir ik vaari te aa ja
Mitra di afeem wali dbi tere purse vich reh gyi..

जिन्दा है स्कोर्ट और सांडर्स


भारतीय संविधान मैं जो सबसे अहम वस्तु है वो है विधि के द्वारा स्थापित शासन की सथापना का
लक्ष्य और इसी के अन्तरगत और इसी स्वपन को पूरा करने के लिए स्थापना हुई पुलिस बल की
ये पुलिस बल का स्वरुप परन्तु वही रखा गया जो अंग्रेजो के समय था अब जब पूरा संविधान ही
अंग्रजो वाला हो तो कल्पना की जा सकती है की पुलिस व्यवस्था मैं परिवर्तन करके अपने ऐशो आराम मैं कोन खलल डालता जो जैसा है उससे वैसे ही चलने दिया जाये
ऐसी ही किसी सोच या पूर्वाग्रहों से पीड़ित दिख पड़ते है वो लोग
अब नेहरू और गाँधी जैसो को गिफ्ट मैं दी गयी आजादी या यु कहे की राजवंश को किया गया
सत्ता परिवर्तन वो भी इस विश्वास के साथ की वो पूरी निष्टा से उन्ही के शासन को आगे बढायेंगे
कल्पना की जा सकती है की नवीनता का नितांत आभाव रहेगा
भारतीय पुलिस बल की सथापना अंग्रेजो के समय मैं भारतीय लोगो क्रान्तिकारी लोगो और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सर उठाने वाले लोगो के सरो को कुचलने के तात्कालिक शक्ति के फलस्वरूप हुई
और इसी पुलिस बल की शक्ति के कारन अंग्रेजो ने हम भारतीयों पर न जाने कितने जुलम किये न जाने कितनी यातनाये दी
परन्तु १९४७ की ताताकथित आजादी के बाद भी इसके स्वरुप मैं कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया गया और खेत को सँभालने और उसकी रक्षा का भार सबसे बड़े चोर को दे दिया
पुलिस बल का उपयोग हमेसा से ही सत्ता प्रितष्ठानो ने अपनी अहम और स्वार्थ पूर्ति के लिए ही सदैव किया है
पुलिस बल आजकल लोकल विधायको दलालो का पैसे बनाने का अड्डा बन चुके है
और खुद पुलिस वाले किसी शैतान से कम नहीं है आलम ये है किसी पुलिस स्टेशनों मैं
अगर हमें कोई FIR करवानी है तो हमारी जेब भरी होनी चाहिए या फिर कोई बड़ी पहुँच
अगर दोनों मैं से कुछ भी नहीं है तो न्याय पाना तो बहुत दूर की बात है आपकी रिपोर्ट
भी दर्ज नहीं होती है
थानाधिकारी ही नहीं बल्कि एक अदना सा कांस्टेबल भी एक आम आदमी को कुत्ते की तरह
समझते है बेवजह लोगो को तंग करना उनको कुछ जयादा ही पसंद है
इनके खिलाफ आवाज उठाने वालो को अक्सर नारकीय जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है
आज पुलिस स्टेशनों मैं रंडी के कोठे से भी ज्यादा गिरे हुए काम होते है
एक वेश्या तो अपनी इज्जत अपनी मज़बूरी मैं बेचती है पर यहाँ तो जमीरो की बोली लगती है
वो भी ऐशो आराम के लिए ऐसी गिरी हुई संस्थयाए देश मैं न्याय की स्थापना करेगी मानना मुश्किल है
आज एक स्वाभिमानी व्यक्ति अगर न्याय पाने के लिए किसी पुलिस अधिकारी के खिलाफ आवाज उठा ले तो उसकी पिटाई अपमान और न जाने क्या क्या झेलना पड़ता है ऐसे मैं एक आम आदमी
क्या करे ?
एक बार लाला लाजपतराय जी को लाठियों से पीट पीट कर मार डाला गया था और वो भी इसलिए क्योकि वो न्याय के लिए लड़ रहे थे , ये आजादी के पहले की बात थी परन्तु क्या आज हालातों मैं कोई तबदीली आई है, नहीं ,आज भी पुलिस का वही बर्व=बरता वाला बर्ताव न्याय को कुचलने का पर्यास वो सब आज भी वैसे ही जैसे १९४७ से पहले थे
परन्तु तब युवा मैं जोश था उनका जमीर जिन्दा था तभी भगत सिंह राजगुरु आजाद जी ने सांडर्स
को मार कर बदला लिया युग बदला हम आजाद हुए परन्तु कुछ नहीं बदला तो स्कोर्ट और सांडर्स जैसे अफसर नहीं बदले तो देश के हालात कुछ नहीं बदला तो न्याय पाने के लिए फिर अन्याय को
सहने का रिवाज
हां कुछ बदला है तो आज के युवा का स्वाभिमान उनका जमीर जो मर चूका है आज भी न जाने कितने लाला लाजपतराय जी के राह पर चलने वाले की हत्या आजादी के बाद इन्ही पुलिस वालो ने कर दी परन्तु न कोई भगत सिंह पैदा हुआ न कोई आजाद ...................
आखिर मैं एक प्रश्न की आखिर क्या हो गया हमरी युवा पीढ़ी को और आखिर क्या जरुरत है हमें ऐसे पुलिस वालो की .............?
क्यों न ऐसे स्कोर्ट और सांडर्स को गोली मार दी जाये ?
सोचिये जरा ...........................
By:Er. Ankit mimani